आई नोट , भाग 19
अध्याय 3
दिमागी कैद
भाग 5
★★★
शाम के तकरीबन 6:00 बजने को हो रहे थे। दिनभर की मौज मस्ती के बाद शख्स ने कार अपनी बिल्डिंग के सामने लाकर खड़ी की। उसके चेहरे पर खुशी थी। मगर ऐसी खुशी जो बस उसके चेहरे पर हल्की सी झलक के रूप में दिखाई दे रही थी। वही कंचन खुलकर अपने चेहरे पर खुशी दिखा रही थी।
शख्स नीचे उतरा और उतरकर कंचन वाले साइड का दरवाजा खोला। दरवाजा खोलने के बाद दोनों ही अंदर की तरफ जाकर सीढ़ियां चढ़ने लगे।
सीढ़ियां चढ़ते हुए शख्स ने अपने मन में कहा “आज के दिन मुझे ऐसे लग रहा है जैसे मैं किसी अलग ही दुनिया में अपना समय निकाल कर आया हूं। मतलब लिटरली, लिटरली आज के दिन के चक्कर में मैंने अपनी कहानी की ऐसी तैसी कर दी। एक अच्छी शुरुआत के बाद कहानी को जहां सही मायने में किसी और अलग दिशा पर आगे बढ़ना चाहिए था, वही मैंने इस कहानी के पूरे अध्याय को एक बच्चे तक सीमित कर डाला। होता है कभी-कभी। एक लेखक की जिंदगी भी सिर्फ उसकी कहानियों तक सीमित नहीं रहती, उसकी जिंदगी में कुछ ऐसे क्षण भी होते हैं जिन्हें कभी-कभी सामने लाने का मन करता है। हां, लोगों के लिए यह चीज बे मायने रहती है। वह कहानी पढ़ते हैं। और उन्हें कहानी में सिर्फ सस्पेंस, थ्रिल, कॉमेडी इन्हीं सब से मतलब होता है। लेखक भले ही कचरे के ढेर में पड़ा सड़ गल जाए, मगर लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद लोग तब भी यह पुछते दिखेंगे कि अगला भाग कहां हैं। अगली किताब कब पब्लिश होगी। इसलिए जब भी कोई मुझसे पूछता है मैं कहानी किसके लिए लिखता हूं, तो यही कहता हूं कि मैं कहानी खुद के लिए लिखता हूं। लोगों को पसंद आ जाए तो मुझे कोई एतराज नहीं, और अगर ना पसंद आए तो घंटा मेरा क्या उखाड़ लेंगे। कहानी उनके लिए थी ही नहीं।”
सीढ़ियां चढ़ने के बाद वह लोग एक दरवाजे के पास आकर खड़े हो गए। शख्स तो आगे जा रहा था मगर कंचन ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया था। इसके बाद कंचन ने अपने बगल में टांगे बेग से चाबी निकाली और दरवाजा खोलने लगी।
इसी दौरान शख्स ने अपने मन में कहा “ मुझे एक महान और बड़े लेखक के शब्द याद आ रहे हैं जो मैंने किसी लिखने वाले प्लेटफार्म पर पढे थे। उसने लिखा था, कहानी का मतलब 24*7 एंटरटेनमेंट नहीं होता। कहानी का मतलब होता है बस कहानी, ऐसी कहानी जिसमें इमोशन हो, भावना हो, उद्देश्य हो, अर्थ हो, उतार-चढ़ाव हो। ज्यादातर ऑडियंस कहानी को एंटरटेनमेंट के तौर देखती है, जिससे कभी भी कहानी को परिभाषित नहीं किया जा सकता। हां, एंटरटेनमेंट कहानी का एक हिस्सा जरुर हो सकता है, मगर पुरी की पूरी कहानी कभी भी एक एंटरटेनमेंट नहीं हो सकती। यह जो भी बात लिखी थी बिल्कुल सही लिखी थी। पाठक जो भी कहानी पढ़ते है, वह कहानी, कहानी ना होकर किसी के इमोशन होते हैं। ऐसे इमोशन जो असल दुनिया से निकलते हैं। मगर नोट द पॉइंट..... यह लाइन अभी भी लागू होती है... आप जो पढ़ रहे हैं वह सिर्फ कल्पना पर आधारित है... इसका वास्तविक घटनाओं से कोई लेना देना नहीं। बाकी आप जो भी पढ़ सुन रहे हैं वह सब असली है।”
तभी घर का दरवाजा खुला और उसके दूसरी ओर एक मोटा आदमी दिखाई दिया, वो मोटा आदमी जो कल शख्स को लाश ठिकाने लगाते वक्त मिला था। शख्स अपने विचारों में खोया हुआ था मगर सामने का मोटा आदमी नहीं। उस मोटे आदमी ने जैसे ही शख्स को देखा, उसने अपने हाथ की मूठीयां गुस्से में बंद की और जोरदार मुक्का शख्स के मुंह पर दे मारा।
मुक्का पड़ते ही शख्स सीधे दूसरी ओर जा गिरा। इसी के साथ उसके मन के विचार टूट गए, उसने खुद को संभाला और गुस्से में अपने मन के अंदर कहा “साले....@:@+# ” और पलटा।
पलटने के बाद जैसे ही उसने अपने सामने के मोटे आदमी को देखा वह बिल्कुल खामोश हो गया।
कंचन आनन-फानन में बोली “पापा, यह आप क्या कर रहे हो, इनको क्यों मार रहे हो”
मोटे आदमी ने कंचन की बांह को पकड़ा और उसे खींचते हुए अंदर की ओर धक्का दे मारा। धक्का मारते हुए वह बोला “चुप कर पागल लड़की, एक तो तेरी मां पहले ही घर से निकल गई है, ऊपर से तू भी घर से निकलकर आवारागर्दी कर रही है। वो...भी...वो भी अपने अंकल की उम्र के लड़के के साथ”
आदमी यह बोला तो शख्स ने उसे तुरंत टोकते हुए कहा “देखिए भाई साहब वह सिर्फ बच्ची है।”
मगर इससे पहले शख्स अपनी लाइन पूरी कर पाता मोटे आदमी ने उसे गुस्से से कहा “मैं जानता हूं तुम जैसे लोगों को। तुम जैसे वाहियात लोग बच्चों को भी नहीं बख्शते। दूर रहना आज के बाद मेरी बेटी से। अगर तुम मुझे फिर कभी इसके पास दिखे तो मैं सीधे पुलिस कंप्लेंट कर दूंगा।”
उसने कहा और दरवाजा जोर से उसके मुंह पर बंद कर दिया। उसके दरवाजा बंद कर देने के बाद शख्स अपनी जगह पर अकेला खड़ा रह गया। शांत और बिल्कुल खामोश। शाम हो चुकी थी और बिल्डिंग की लाइट अभी जगी नहीं थी। इसलिए बिल्डिंग में हल्का हल्का अंधेरा था। उस हल्के हल्के अंधेरे में खड़ा शख्स अपनी जगह पर काफी गंभीर और चिंताजनक स्थिति में खड़ा रहा था।
शख्स ने अपनी गर्दन नजरअंदाज करने वाले अंदाज में हिलाई और सिढियों की तरफ चला गया। लगभग एक थके हुए इंसान की तरह उसने सीढ़ियों पर चढ़ता हुए कहा “चिफ पिय्पल, इनका कुछ नहीं हो सकता। अब इसके बाद भी लोग मुझे दोष देंगे कि मैं अपनी कहानी में लोगों को मारता फिर रहा हूं। हशश... बस मैंने फैसला कर लिया। फैसला कर लिया, मुझे चाहे कितने भी बुरे लोग क्यों ना मिले हैं, मैं अब किसी का भी कत्ल नहीं करूंगा। मुझे मेरी जिंदगी को मानवी के अलावा कहीं और एक्सप्लोर करनी ही नहीं चाहिए। मानवी ही मेरा सब कुछ है, और वही मेरा सब कुछ रहेगी। मानवी की जगह कोई भी नहीं आ सकता। दुनिया को जितना बुरा बना है बनने, मेरा उससे कोई वास्ता नहीं। मेरा वास्ता सिर्फ और सिर्फ मानवी से हैं।”
वह दरवाजे पर पहुंचा और थके हुए इंसान की तरह दरवाजे की डोर बेल बजाई। डोर बेल बजाने के बाद उसने अपने मन में कहा “और मानवी, तुम, तुम भी अपने लड़के के साथ भागने वाले प्लेन को कैंसिल कर दो। भाड़ में भी मत जाओ। मेरी जिंदगी सिर्फ तुम ही हो। कहीं नहीं जाना तुम्हें।”
मानवी ने दरवाजा खोला, वह अपने चेहरे पर बेसन का लेप लगा रही थी, इस वजह से उसके एक हाथ में बेसन के लेप वाला बाउल था, जबकि दूसरे हाथ से उसने दरवाजा खोला था। मुंह पर बेसन का लेप लगा हुआ था मगर अभी सिर्फ माथे और एक गाल पर ही लगा था।
मानवी ने बिना शख्स की तरफ ध्यान दिए कहा “अरे आ गए आप, आज बड़ी जल्दी आना हुआ।”
“हां।” शख्स ने सुस्त आवाज में जवाब दिया, और ढीली चाल से चलता हुआ शु रैंक की तरफ चला गया। मानवी ने यह देखा तो उसने सामने देखते हुए अपने पति पर ध्यान दिया। स
शख्स शू रैक पर जूते खोलते वक्त उसकी तरफ मुड़ गया था तो उसका चेहरा साईड से दिखाई दे रहा था। वहां मानवी को उसके मुंह पर लगी हुई चोट दिखाई दी। मोटे आदमी के मुक्के की वजह से उसका मुंह एक छोटे से हिस्से पर काला पड़ गया था।
उसे देखते ही मानवी के चेहरे पर परेशानी की लकीरे आ गई, उसने बाउल तुरंत वहां नीचे रखा और शख्स की तरफ जाते हुए चिंताजनक आवाज में बोली “अरे यह आपके चेहरे पर क्या हुआ, यह चोट कैसे लगी, ” उसने करीब जाकर हाथ लगाकर देखा “ओह, नहीं, कितना गहरा निशान पड़ गया, यह क्या हुआ आपके साथ, ”
शख्स अपने जूते खोलते हुए ढिली आवाज में कहा “निशान तो ठीक है मगर तुम यह क्या करती रहती हो, कभी मुझे आप कहती हो कभी तुम, पहले डिसाइड कर लो आप कहना है या तुम। बेमतलब मैं भी कंफ्यूज होता रहता हूं।”
“अरे...” मानवी ने थोड़े से अलग एक्सप्रेशन दिखाए “आदत है। जब आप ऐसे ऑफिस से आते हो तो आप कहने का मन करता है, मगर जब आने के बाद काफी टाइम बिता लेते हो तो तुम कहने का मन करने लग जाता है। ऑफिस से आते वक्त तुम डेंजर लगते हो, मगर जब थोड़ा टाइम घर में रुक जाते हो तो फिर प्यारे लगने लगते हो।”
शख्स ने अनमने से ढंग में सिर हिलाया और टाई खोलते हुए सोफे पर जाकर बैठ गया। इस दौरान मानवी ने उसकी दाईं और बाहं में अपनी हाथ डाल लिया था।
जब शख्स सोफे पर बैठ गया तब मानवी बोली “अच्छा मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूं।” और इतना बोल कर पानी लेने के लिए चली गई।
जब मानवी पानी लेने के लिए चली गई तब शख्स ने अपने मन में सोचते हुए कहा “आखिर यह दुनिया किसी इंसान को सुख शांति से जीने क्यों नहीं देती?” वह अपने चेहरे से उदास दिखाई दे रहा था। वह भी इस तरह से कि मानो कुछ ही देर में रो देगा। “आखिर क्यों दुनिया एक इंसान की दुश्मन बन जाती है? मैं कितना खुश था सुबह। फिर दिन भर कितना खुश रहा। मैं उसे मारने वाला था, मगर जब कंचन की दिमागी कैद की वजह से अपना डिसीजन बदला तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने एक नई जिंदगी की शुरुआत कर ली। मगर फिर, फिर यह दुनिया,” उसने चेहरे को गुस्से में कर लिया “यह दुनिया आखिर आ ही गई मेरे फटे में टांग अड़ाने के लिए। मैं जब भी अच्छा बनने की कोशिश करता हूं यह मुझे बुरा बनने पर मजबूर कर देती है। मेरे मां-बाप, मेरी बहन, किसी ने भी मुझे अच्छा बनने का मौक़ा नहीं दिया। अच्छा बना तो कुछ ना कुछ ऐसा कर दिया जिसके बाद मुझे बुरा बनना पड़ा। आखिर क्यों, आखिर क्यों मेरे साथ ऐसा होता है।” उसके गुस्से वाले भाव फिर से बदलकर उदासी वाले भावो में हो गए। गहरी उदासी वाले भावों में।
तभी मानवी वहां आई और उसने पानी का गिलास आगे की तरफ किया। शख्स ने पानी का ग्लास पकड़ा मगर पकड़ते ही उसके हाथ से गिलास छूट गया।
“अरे... यह क्या कर रहे हो... तुम्हारा ध्यान किधर है।”
गिलास छुटने की वजह से वो नीचे गिर कर टुट गया था। मानवी नीचे झुकी और टूटे हुए कांच के गिलास के टुकड़ों को उठाने लगी। मगर तभी उसे रोने की हल्की हल्की सिसकियां सुनाई दी। उसने चेहरा ऊपर की तरफ किया तो देखा शख्स रो रहा था। वह भी ऐसे जैसे मानो वह रोना नहीं चाहता, मगर उसके अंदर इतना सारा दुख दर्द इकट्ठा हो गया था कि वह खुद को रोने से रोक नहीं पाया।
मानवी ने यह देखा तो उसने कांच के टुकड़ों को उठाना छोड़ा और तुरंत सोफे पर बैठते हुए शख्स के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया। शख्स के चेहरों को अपने हाथों में लेते हुए वह बोली “अरे तुम रो क्यों रहे हो... क्या हुआ तुम्हें... बताओ मुझे क्या हुआ... क्या किसी ने तुम्हें कुछ कहा.... तुम ” उसका पति रो रहा था तो उसका दिल भी भारी होता जा रहा था। वह भी रोने वाली हालत में पहुंच रही थी। “ बताओं ना तुम ऐसे रो क्यों रहे हो।” आखिरकार उसको भी रोना निकल गया। शख्स रो ही ऐसे रहा था कि उसे देखते ही किसी का भी रोना निकल जाए। “देखो जो भी बात है मुझे बताओ”
शख्स ने अपने पैर सोफे पर किए और छोटे बच्चे की तरह सिघुड़ता हुआ अपने सर को मानवी की गोद में रखकर लेट गया। उसने अपने दोनों हाथों को अपने सर के नीचे किया और बोला “यह दुनिया.. यह दुनिया आखिर इतनी बुरी क्यों है।”
मानवी ने अपने आंसू साफ किए और शख्स के बालों में हाथ फेरते हुए बोली “लगता है तुम्हारी... ऐसे बिना कारण रोने वाली आदत फिर से वापस आ गई... पहले भी तुम ऐसे हैं बिना मतलब के रो पड़ते थे... शादी के तीन सालों में पता नहीं तुमने कितनी बार रोया है... कुछ बताते भी नहीं क्या हुआ क्या नहीं...।” उसने अपना चेहरा नीचे की तरफ किया और शख्स के माथे को चूमा “जो भी है.. सब ठीक हो जाएगा।”
शख्स ने अपनी आंखें बंद की, जिससे उसके आंसुओं की कुछ बूंदें आंखों में ही सिमट गई, आंखें बंद करते हुए उसने रोते हुए स्वरों में कहा “मानवी, प्लीज मुझे कभी छोड़कर मत जाना, सच में, सच में मैं नहीं जानता मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा। प्लीज, चाहे कुछ भी हो जाए, कुछ भी मतलब कुछ भी, मुझसे कभी अलग मत होना। मैं तुम्हारा अलग होना बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।”
मानवी ने बालों पर हाथ फेरते हुए कहा “नहीं... नहीं मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी... मुझे पता है तुम मुझसे कितना प्यार करते हो। तुम मुझसे जितना प्यार करते हो... उतना प्यार जिंदगी में कोई मुझसे नहीं कर सकता। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊंगी।” उसने कहा और अपने सर को शख्स के सर पर रख लिया।
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